Chapter 2 नमक का दारोगा
Chapter 2 नमक का दारोगा Important Questions and Answers
GSEB Solutions Class 12 Hindi नमक का दारोगा Important Questions and Answers
नमक का दारोगा Summary in Hindi
विषय-प्रवेश :
प्रेमचंद की कहानियों में समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं सरकारी महकमों में व्याप्त भ्रष्टाचार का हूबहू रूप देखने को मिलता है। प्रस्तुत कहानी में उन्होंने तत्कालीन समाज की यथार्थ स्थिति का चित्रण किया है। कहानी में पंडित अलोपीदीन धन के बल पर जहाँ हर प्रकार के गैरकानूनी काम करवा लेने में विश्वास रखते हैं और अदालत के अधिकारी उनके प्रभाव में गलत-सही हर प्रकार का फैसला उन्हीं के पक्ष में करते हैं, वहीं दारोगा वंशीधर अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए पंडित अलोपोदीन जैसे प्रभावशाली व्यक्ति को हिरासत में लेकर उन पर मुकदमा चलवाने की हिम्मत करता है। अंत में पंडित अलोपीदीन वंशीधर की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के आगे नत-मस्तक हो जाते हैं और उसे अपनी संपत्ति का स्थायी मैनेजर नियुक्त कर देते हैं।
पाठ का सार :
नमक का नया विभाग : उस समय प्राकृतिक नमक का व्यवहार करने पर अंकुश लग गया था। इसलिए व्यापारीगण चोरी-छिपे नमक का व्यापार करते थे। नमक का नया विभाग खुल गया था। घूस देकर काम हो रहा था और अधिकारियों की जेबें भर रही थीं।
नमक का दारोगा : इस विभाग के दारोगा का पद इतना आमदनी देनेवाला हो गया कि इस पद को पाने के लिए वकीलों तक का जी ललचाता था।
मुंशी वंशीधर : उसी समय मुंशी वंशीधर भी रोजगार पाने की इच्छा से घर से निकले थे। उनके पिता ने उन्हें समझाया कि नौकरी ऐसी करना, जिसमें ऊपरी आमदनी हो, क्योंकि ऐसी नौकरी में ही बरकत होती है।
वंशीधर बने नमक का दरोगा : वंशीधर अच्छे शकुन से घर से निकले थे। उन्हें नमक विभाग में दारोगा की नौकरी मिल गई। वेतन अच्छा और ऊपरी आमदनी तो अंधाधुंध। इससे वृद्ध पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।
बात एक रात की : एक रात को दारोगा वंशीधर गहरी नींद में सोए थे। अचानक उन्हें गाड़ियों की गड़गड़ और मल्लाहों का शोर सुनाई दिया। वे तुरंत वरदी पहनकर और अपनी पिस्तौल लेकर आवाज़ की जगह जा पहुंचे। उन्होंने देखा कि गाड़ियों की लंबी कतार यमुना नदी पर नावों से बने पुल से होकर दूसरी ओर जा रही है।
पंडित अलोपीदीन का नाम : पूछ-परख से पता चला कि ये गाड़ियाँ पंडित अलोपीदीन की है और उन पर लदा नमक कानपुर भेजा जा रहा है। अलोपीदौन इलाके के प्रतिष्ठित जमींदार थे और उनका लाखों का लेनदेन था। वे बड़े चलता-पुरजा आदमी थे। दारोगा वंशीधर ने नमक की सारी गाड़ियाँ रोक दी।
अलोपीदीन का सिद्धांत : पंडित अलोपीदीन को सूचना मिली तो उन्होंने इसे सामान्य ढंग से लिया। उनका सिद्धांत था, सारी समस्याएं लक्ष्मी के बल पर हल की जा सकती हैं। वे मौके पर पहुंचकर दारोगा वंशीधर को अपने ऐश्वर्य की मोहिनी से प्रभावित करने का प्रयास करने लगे। वंशीधर पर इसका कोई असर नहीं हुआ और वह उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दे देता है।
घूस देने का प्रयास : बात बनती न देखकर पंडित अलोपीदीन दारोगा वंशीधर को अपने मुख्तार से एक हजार रुपये देने का आदेश देते हैं। इस पर दारोगा ने कहा कि एक हजार क्या, एक लाख देकर भी आप मुझे सच्चे मार्ग से नहीं डिगा सकते।
बढ़ती रकम : पंडित अलोपीदीन एक से पांच, पांच से दस, दस से पंद्रह, पंद्रह से बीस और अंत में चालीस हजार रुपये देने की पेशकश करते हैं, पर दारोगा वंशीधर टस-से-मस नहीं हुआ। अंत में वंशीधर ने अलोपीदीन को हिरासत में ले लेता है।
अदालत में पेशी : अदालत में अधिकारी से लेकर अर्दली तक अलोपीदीन के भक्त थे। सबको ताज्जुब था कि वे कानून के पंजे में कैसे आ गए। वकीलों की एक सेना तैयार हो गई और डिप्टी मैजिस्ट्रेट ने लिखा कि मुकदमे में पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध दिए गए प्रमाण निर्मूल और भ्रमात्मक हैं। यह बात कल्पना से बाहर है कि उन्होंने थोड़े लाभ के लिए ऐसा दुस्साहस किया हो।
धन से वैर का परिणाम : वंशीधर ने धन से वैर मोल लिया था। एक सप्ताह बाद उन्हें मुजत्तली का परवाना मिल गया। उनके बूढ़े पिता पछताकर हाथ मलने लगे। वंशीधर की माता की जगन्नाथ और रामेश्वर की यात्रा की कामना मिट्टी में मिल गई।
वंशीधर को ईमानदारी का इनाम : पंडित अलोपीदीन का ज़िंदगी में पहली बार सच्चे आदमी से सामना पड़ा था। वे कुछ दिनों बाद वंशीधर के घर गए। उन्होंने वंशीधर से कहा, “मेरा हजारों उच्च पदाधिकारियों से काम पड़ा है। सबको मैंने धन का गुलाम बनाकर छोड़ दिया, किन्तु मुझे परास्त किया तो आपने।” उन्होंने वंशीधर के सामने स्टैंप लगा पत्र रख दिया और उनसे उस पर दस्तखत कर देने के लिए कहा। वंशीधर ने पत्र पढ़ा। पंडित अलोपीदीन ने उन्हें अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त किया था। छः हजार मासिक वेतन, रोज का खर्च, बंगला, सवारी के लिए घोड़ा, नौकर-चाकर मुफ्त!
वंशीधर की कृतज्ञता : वंशीधर को पंडित अलोपीदीन से इतने अच्छे व्यवहार की उम्मीद न थी। उनकी आँखें खुशी और श्रद्धा से डबडबा आई।
नमक का दारोगा शब्दार्थ :
ईश्वरदत्त – ईश्वर द्वारा दी हुई।
छल-प्रपंच – छलकपट।
सूत्रपात – किसी कार्य का प्रारंभ होना।
सर्वसम्मानित – सबसे प्रतिष्ठित।
प्राबल्य – प्रबलता।
वृत्तान्त – विवरण, हाल।
ओहदे – किसी विभाग में कर्मचारी का पद।
चढ़ावे – देवता पर चढ़ाई जानेवाली सामग्रियाँ।
लुप्त – गायब।
बरकत – वृद्धि, बढ़ती।
गरज – आवश्यकता।
धैर्य – धीरज।
पथप्रदर्शक – मार्ग दिखानेवाली।
शकुन – सगुन, शुभ मुहूर्त या लक्षण।
प्रतिष्ठित – सम्मानित।
मोहित – मुग्ध, आसक्त।
तर्क – दलील।
पुष्ट – पक्का।
तमंचा – पिस्तौल।
अखंड – दृढ़, पूरा।
उमंग – उल्लास।
चालान – अपराधी को पकड़कर न्याय के लिए भेजा जाना।
स्तंभित – चकित।
उहंड – अक्खड़, उद्धत।
अल्हड़ – दुनियादारी न जाननेवाला, भोला आदमी।
दीनभाव – नम होने का भाव।
ऐश्वर्य – धनसम्पत्ति।
सांख्यिक – आंकड़ों का समूह।
देव-दुर्लभ – देवताओं के लिए दुर्लभ।
अलौकिक – अद्भुत, अपूर्व।
अविचलित – स्थिर।
रोजनामचा – दैनिकी।
अगाध – अथाह, अपार।
अमले – किसी संस्था के अधिकारियों का दल।
अरदली – अधिकारियों के चपरासी।
विस्मित – चकित, अचम्भित।
अनन्य – अभिन्न, एकनिष्ठ।
वाचालता – वाकपटुता।
डांवाडोल – अस्थिर।
तजबीज – फैसला, राय।
निर्मूल – निराधार।
भ्रमात्मक – भ्रम पैदा करनेवाले।
नमकहलाली – स्वामिभक्ति ।
गर्वाग्नि – गर्व रूपी आग।
प्रज्ज्वलित – जलाना।
मुअत्तली – जाँच के लिए पद से हटाए जाने की क्रिया।
परवाना – आज्ञापत्र।
कार्यपरायणता – कर्तव्य के प्रति आसक्ति।
भग्नहदय – निराश।
कुडबुडाना – मन में कुढ़ना।
अकारथ – व्यर्थ।
दुरवस्था – बुरी हालत।
विकट – भयानक।
पछहिये – पश्चिम दिशा के अच्छी नस्ल के।
दंडवत – जमीन पर लेटकर।
लल्लो – चप्पो-चिकनी-चुपड़ी।
कपूत – बुरा लड़का।
वात्सल्यपूर्ण – स्नेहपूर्ण।
कुलतिलक – कुल का तिलक।
धर्मपरायण – धर्म में आसक्ति रखनेवाला।
अर्पण – निछावर।
स्वाभिमान – अपनी प्रतिष्ठा का अभिमान।
विनीत – विनम्र।
कृतज्ञता – एहसान मानने का भाव।
नियत – निश्चित।
कम्पित – कॉपता हुआ।
मर्मज्ञ – मन की बात का जानकार।
विद्वता – बुद्धि, ज्ञान।
बेमुरौवत – सौजन्यता, उदारता।
धर्मनिष्ठ – जो धर्म में आस्था रखता हो।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सविस्तार (पाँच-छ: वाक्यों में) लिखिए:
प्रश्न 1. रोजगार पर जाते समय बंशीधर के पिता ने उन्हें क्या – सीख दी?
उत्तर :
वंशीधर के पिता एक अनुभवी व्यक्ति थे। उन्होंने पहले तो – पुत्र का ध्यान उसके कर्तव्यों की ओर दिलाया और फिर उसे नौकरी में सफलता का मंत्र दिया। उन्होंने वंशीधर को समझाया कि नौकरी में ओहदे का महत्त्व नहीं है। यह तो पीर के मजार के समान है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रहनी चाहिए। नौकरी ऐसौ करना जिसमें ऊपरी आय की गुंजाइश हो।
मासिक वेतन तो पूर्णमासी के चाँद की तरह घटते-घटते गायब हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिसका प्रवाह कभी कम नहीं होता और सदा प्यास बुझाता रहता है। वेतन मनुष्य देता है इसलिए उसमें बढ़ोत्तरी नहीं होती। इसके विपरीत ऊपरी आय ईश्वर देता है। इसलिए उसमें बरकत होती है। मनष्य में विवेक का बड़ा महत्त्व है। अवसर के अनुसार आदमी से व्यवहार करना चाहिए। गरजवाले के साथ कठोर बनने से लाभ होता है जबकि बेगरज के साथ होशियारी से काम लेना चाहिए। इस प्रकार रोजगार पर जाते समय वंशीधर को पिता ने दुनियादारी की महत्त्वपूर्ण सीख दी।
प्रश्न 2.दारोगा के रूप में मुंशी वंशीधर ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर :
गाडीवानों ने पंडित अलोपीदीन को दारोगा द्वारा उनकी गाड़ियां रोक दी जाने की सूचना दी। पंडित अलोपीदीन को लक्ष्मीजी पर अखंड विश्वास था। घाट पर पहुंचकर उन्होंने बड़ी नम्रतापूर्वक दारोगा से गाड़ी रोकी जाने का कारण पूछा। दारोगा वंशीधर ने कहा कि सरकारी हुक्म के अनुसार गाड़ियाँ रोकी गई हैं। तब पंडित अलोपीदीन दारोगा वंशीधर को अपने ऐश्वर्य की मोहिनी से प्रभावित करने का प्रयास करने लगे। इससे अप्रभावित रहकर वंशीधर ने अलोपीदीन को हिरासत में लेने का आदेश दिया।
बात बनती न देखकर पंडित अलोपीदीन ने धन की सांख्यिक शक्ति का सहारा लिया। उन्होंने एक हजार से लेकर चालीस हजार तक की रिश्वत का सुनहरा जाल फेंका परंतु दारोगा वंशीधर अपने सच्चे मार्ग से नहीं डिगे। ईमान पर डिगे रहकर उन्होंने अलोपीदीन को हिरासत में ले लिया। इस प्रकार दारोगा वंशीधर ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा का अद्भुत परिचय दिया।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.पंडित अलोपीदीन कौन थे?
उत्तर :
पंडित अलोपीदीन अपने इलाके के सबसे प्रतिष्ठित जमीदार थे। उनका लंबा-चौड़ा व्यापार था। अफसरों, अधिकारियों से लेकर हर छोटे-बड़े आदमी पर उनका एहसान था।
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