Chapter 4 अकेली
Chapter 4 अकेली
अकेली Summary in Hindi
विषय-प्रवेश :
मनुष्य के जीवन में अकेलापन बहुत दुःखदायी और असहनीय होता है। प्रस्तुत कहानी में अकेलेपन का मानसिक कष्ट भोग रही एक महिला का हृदयस्पर्शी वर्णन किया गया है। वह महिला अपना अकेलापन दूर करने के लिए अपने पड़ोसियों और अपने आसपास रहनेवाले लोगों की खुशी अथवा गमी के आयोजनों में बिना बुलाए प्रेमपूर्वक शामिल हो जाती है और इस प्रकार जीतोड़ मेहनत करती है, मानो उसी का आयोजन हो। एक बार तो उसने अपने एक पुराने रिश्तेदार की एक लड़की की शादी में शामिल होने और कन्या को उपहार देने के लिए अपने मृत पुत्र की एकमात्र निशानी अंगूठी बेच दी थी, पर उसे न्यौता तक नहीं मिला।
पाठ का सार :
सोमा बुआ का परिवार : सोमा बुआ के परिवार में वे और उनके संन्यासी पति हैं। सोमा बुआ का एक बेटा था, जिसकी जवानी में मृत्यु हो गई थी। उनके पति को बेटे की मृत्यु का ऐसा सदमा लगा कि वे सोमा बुआ और घर-बार दोनों का त्याग कर संन्यासी बन गए। अब सोमा बुआ बीस वर्ष से एकाकी जीवन जी रही हैं।
जिंदगी पास-पड़ोसवालों के भरोसे : सोमा बुआ अपनी जिंदगी आस-पास के लोगों से हिल-मिलकर जैसे-तैसे काट रही हैं। किसी के घर मुंडन, छठी, जनेऊ, शादी, गमीं कुछ भी हो, वे बिना बुलाए पहुंच जाती हैं। जी-जान से वहाँ काम में जुट जाती हैं, मानो दूसरे के घर में नहीं अपने घर में ही काम कर रही हों।
किशोरीलाल के बेटे के मुंडन में : सोमा बुआ बताती हैं कि किशोरीलाल के बेटे के मुंडन में उन्होंने उनका कितना काम संभाला था। किशोरीलाल बोले, “अम्मा! तुम न होती तो आज भह उड़ जाती। तुमने लाज रख ली।” क्या बताऊँ वहाँ गीतवाली औरतें मुंडन पर बन्ना-बनी गा रही थीं। समोसे कच्चे ही उतार दिए गए थे और जरूरत से ज्यादा बना दिए थे। गुलाबजामुन इतने कम थे कि एक पंगत में भी पूरे न पड़ते। उसी समय खोया मंगाकर नए गुलाबजामुन बनवाए। इस पर भी संन्यासी महाराज नाराज हो गए – “किशोरी के यहाँ से बुलावा नहीं आया था, तो क्यों गई?” सोमा बुआ ने उन्हें सुना दिया – “घरवालों का कैसा बुलावा।”
सोमा बुआ के संन्यासी पति : सोमा बुआ के संन्यासी पति ग्यारह महीने हरिद्वार में रहते हैं। उन्हें दीन-दुनिया, रिश्तों-नातों से कुछ लेना-देना नहीं है। वे हर साल एक महीने के लिए अपनी पत्नी सोमा बुआ के पास आकर रहते हैं।
सोमा बुआ के साथ संन्यासीजी का व्यवहार : महीने भर के लिए आने पर अकसर सोमा बुआ के साथ उनकी कहा-सुनी होती है। वे सोमा बुआ से कोई स्नेह नहीं रखते। उनके आने पर सोमा बुआ का पास-पड़ोस में घूमना और किसी से मिलना-जुलना बंद हो जाता है। बुआ दो मीठे बोल को तरस जाती हैं। संन्यासीजी को सोमा बुआ का बिना बुलाए किसी के भी किसी कार्यक्रम में जाना बिलकुल पसंद नहीं है।
देवर के ससुरालवालों की लड़की की शादी : एक दिन बुआ प्रसन्न मन से संन्यासीजी से कहती है कि देवरजी की ससुराल की किसी लड़की की शादी उनके गांव में हो रही है। वे लोग यहीं आकर शादी करेंगे। वे कहती हैं देवरजी को तो मरे अरसा हो गया है, पर हैं तो वे लोग समधी ही। वे तुम्हें भी बुलाए बिना नहीं रहेंगे। संन्यासीजी सोमा बुआ की बात सुन लेते हैं, पर जवाब कुछ नहीं देते।
राधा से सलाह : सोमा बुआ पड़ोसन राधा से सलाह करती है कि नए फैशन में लड़की को क्या दिया जाए! फिर वे राधा पर ही छोड़ देती हैं कि जो उसे ठीक लगे लड़की को उपहार में देने लायक चीज खरीदकर ला दे।
पैसों की कमी : सोमा बुआ राधा को पैसे देने के लिए अपना बक्सा खोलती हैं। उसमें केवल सात रुपए मिलते हैं। उनकी नजर उस अंगूठी पर जाती है, जो उनके मृत पुत्र की एकमात्र निशानी थी। उन्होंने पाँच रुपए और वह अंगूठी अपने आँचल में बाँध लिया। उन्होंने अंगूठी राधा को देकर कहा, “ये अंगूठी ले और इसे बेचकर लड़की को देने लायक जो लगे खरीद ला।”
नई चूड़ियाँ : शादी में जाने के लिए अपनी भी कुछ तैयारी करनी थी। सोमा बुआ ने चुडिहार से एक रुपए की हरी-लाल चूड़ियाँ अपने हाथों में पहन ली।
उपहार का सामान : राधा अंगूठी बेचकर चाँदी की सिंदूरदानी, एक साड़ी तथा ब्लाउज का एक कपड़ा लाकर सोमा बुआ को देती है। बुआ की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। देखकर बुआ का अंगूठी बेचने का गम जाता रहा।
बुलाने का समय : राधा सोमा बुआ से शादी में जाने के समय के बारे में पूछती है। बुआ जवाब देती हैं कि नए फैशनवालों की बात हैं। ऐन मौके पर बुलावा आता है। वैसे पांच बजे का मुहूर्त है। बुआ ने एक थाली में साड़ी, सिंदूरदानी, नारियल और थोड़े से बताशे सजाकर राधा को दिखाया।
संन्यासी महाराज की चेतावनी : संन्यासी महाराज सुबह से बुआ का यह आयोजन देख रहे थे। उन्होंने कल से आजतक पच्चीस बार चेतावनी दे दी थी कि यदि कोई बुलाने न आया और तुम चली गई तो ठीक नहीं होगा। बुआ ने भी उन्हें आश्वस्त किया कि बिना बुलाए वे नहीं जाएंगी।
बुलाने की प्रतीक्षा : तीन बजे के करीब बुआ छत पर पहुंचकर अनमने भाव से घूमने लगीं। वे छत से गली में नजर फैलाए इस तरह खड़ी रहौं, जैसे वे बुलावे की प्रतीक्षा कर रही हों …
सात बजे : राधा को सात बजे छत पर धुंधलके में एक छाया गली की ओर मुंह किए हुए बेचैन-सी दिखाई दी। उसने पूछा, “बुआ आज खाना नहीं बनेगा क्या? सात बज गए।” बुआ बोली, “खाने का क्या है। दो जनों का क्या खाना, क्या पकाना।”
सारी चीजें संदूक में : सोमा बुआ निराश होकर छत से नीचे आ गई। उन्होंने अपने हाथ की चूड़ियाँ निकाली और थाली में सजाई हुई सारी चीजें जतन से संभालकर अपने संदूक में रख दिया। फिर बुझे दिल से वे अंगीठी जलाने बैठ गईं।
अकेली शब्दार्थ :
1. परित्यक्ता – छोड़ी हुई, त्याग दी गई।
2. जाता रहा – (यहाँ) मर गया।
3. वियोग – अलग होने का दुःख।
4. सदमा – किसी घटना का आघात।
5. एकरसता – हमेशा एक जैसा रहना।
6. व्यवधान – बाधा।
7. प्रतीक्षा – इंतजार।
8. अंकुश – रोक, दबाव।
9. अबाध – बिना रोक-टोक।
10. कुंठित – धीमा, कुन्द।
11. सम्बल – सहारा।
12. कहासुनी – वाद-विवाद।
13. अवयव – अंग।
14. सक्रिय – क्रियाशील।
15. सुहाता – अच्छा लगता।
16. नवेली – नई ब्याही हुई।
17. गत से – तेजी से, ढंग से।
18. बन्ना-बन्नी – दूल्हा-दुल्हन।
19. आक्रोश – रोष, क्रोध।
20. पंगत – एकसाथ भोजन करनेवालों की पंक्ति ।
21. जस – यश।
22. उपेक्षा – उदासीनता।
23. रौनक – चमक-दमक।
24. बेमरद – जिसका पति उसके साथ न हो।
25. मिन्नत – विनती।
26. मटमैली – मिट्टी के रंग की, गंदी।
27. अव्यक्त – जिसका वर्णन न किया जा सके।
28. पुलकित – गदगद।
29. मिलनसरिता – अच्छी तरह मिलने-जुलने का गुण।
30. आब – आभा, चमक-दमक।
31. बावली – पगली, मूर्ख।
32. अभरक – एक धातु, जिसकी तहें चमकीली होती हैं।
33. संयत – मर्यादित।
34. बुझा दिल – उत्साह मंद पड़ना
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सविस्तार (पाँच-छ: वाक्यों में) लिखिए :
प्रश्न 1. सोमा बुआ का चरित्र लिखिए।
उत्तर :
सोमा बुआ बड़ी जीवंत महिला हैं। जवान पुत्र की मृत्यु के सदमें से पति घर-बार छोड़कर संन्यासी हो गए, पर सोमा बुआ ने किसी तरह वह दुःख झेल लिया। बीस वर्ष से वह अकेलेपन का मानसिक कष्ट भोग रही हैं। अकेलेपन की इस असहनीय पीड़ा को ये आसपास रहनेवाले लोगों की खुशी अथवा गमी के आयोजनों में बिना बुलाए प्रेमपूर्वक शामिल हो जाती हैं।
केवल शामिल ही नहीं होती, इस प्रकार जी-तोड़ मेहनत करती हैं जैसे वह उन्हीं के घर का आयोजन हो। कई बार तो सोमा बुआ की कुशलता के कारण ही पड़ोसियों के घर होनेवाले आयोजन सफल होते हैं और आयोजकों की भद्द होने से बच जाती है। आयोजक उनका आभार मानते हैं और सोमा बुआ को भी अपनी प्रशंसा अच्छी लगती है। दूर के रिश्तेदारों से भी संबंध बनाए रखने में सोमा बुआ का हौसला देखते ही बनता है। परंतु रिश्तेदारों की बेरुखी उनके हौसले को पस्त कर देती है। सचमुच सोमा बुआ एक दयनीय पात्र है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए:
प्रश्न 1. सोमा बुआ के पति क्या करते थे?
उत्तर :
सोमा बुआ के पति संन्यासी थे।।
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